सेना को कमजोर करेगी अग्निपथ स्कीम, अधिकारी से लेकर पूर्व दिग्गज क्यों कह रहे ये बात

नई दिल्ली: कर्तव्य निभाते हुए शहीद होने वाले अग्निवीरों को दिए जाने वाले मुआवजे को लेकर चल रहे राजनीतिक घमासान जारी है। इस बीच, कई सेवारत सैन्य अधिकारियों और दिग्गजों का कहना है कि सबसे बड़ी चिंता यह है कि अग्निपथ योजना युद्ध प्रभावशीलता और ऑपरे

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नई दिल्ली: कर्तव्य निभाते हुए शहीद होने वाले अग्निवीरों को दिए जाने वाले मुआवजे को लेकर चल रहे राजनीतिक घमासान जारी है। इस बीच, कई सेवारत सैन्य अधिकारियों और दिग्गजों का कहना है कि सबसे बड़ी चिंता यह है कि अग्निपथ योजना युद्ध प्रभावशीलता और ऑपरेशनल दक्षता को कम कर देगी। इसे चीन और पाकिस्तान की तरफ से पैदा हुए स्पष्ट और वर्तमान खतरों के बावजूद नजरअंदाज किया जा रहा है।

एयरफोर्स, नेवी के नुकसान

सैन्य अधिकारियों का कहना है कि एक सैनिक, नाविक और वायुसैनिक को अपेक्षित व्यावहारिक अनुभव के साथ पूरी तरह से युद्ध के लिए तैयार होने में सात से आठ साल लगते हैं, लेकिन जून 2022 में शुरू की गई योजना के तहत चार साल बाद प्रत्येक बैच के 75% अग्निवीरों को सेवा से हटा दिया जाएगा। इससे खास तौर पर भारतीय वायुसेना और नौसेना को नुकसान होगा, जो तकनीक के मामले में ज्यादा संवेदनशील हैं, लेकिन सेना पर भी इसका असर होगा।

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सेना की कीमती समय, पैसा खर्च

एक शीर्ष अधिकारी ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि तेजी से तकनीकी प्रगति के साथ युद्ध का नेचर बदल रहा है। सशस्त्र बलों को अग्निवीरों को बेहतरीन हथियार प्रणालियों, मिसाइलों और मशीनरी को संभालने के लिए ट्रेनिंग देने में अपना कीमती समय और पैसा क्यों खर्च करना चाहिए, जबकि उनमें से अधिकतर चार साल बाद ही सेना से बाहर हो जाएंगे। इसके अलावा, अत्यधिक व्यस्त सेना पहले से ही युद्ध के लिए तैयार सैनिकों की कमी का सामना कर रही है, जो अग्निपथ योजना में बदलाव के बिना हर गुजरते साल के साथ और भी बढ़ती जाएगी।

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सिर्फ 40 हजार की ही भर्ती

हर साल करीब 60,000 सैनिक रिटायर्ड होते हैं, जबकि अग्निवीरों की वार्षिक भर्ती वर्तमान में 40,000 तक सीमित है। यह देखते हुए कि सरकार की तरफ से अग्निपथ योजना को खत्म करने की संभावना नहीं है। इसका मुख्य उद्देश्य बढ़ते वेतन और पेंशन बिलों को कम करना है। सशस्त्र बल चाहते हैं कि अग्निवीरों की सेना में बनाए रखने की दर मौजूदा 25% से कम से कम 50-60% तक बढ़ाई जाए। इसमें अन्य बदलावों के साथ, सर्वे और उनकी इकाइयों से फीडबैक को आधार बनाया जाए।

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पूर्व नेवी चीफ ने की आलोचना

नवंबर 2021 में नौसेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए एडमिरल के बी सिंह ने गुरुवार को 'एक्स' पर एक पोस्ट में कहा, "अग्निपथ को आगे बढ़ाने वाली एकमात्र प्रेरणा पेंशन बिल को कम करना है। यह तथ्य कि यह योजना युद्ध प्रभावशीलता को कम कर देगी। यह सभी को पता है जो राष्ट्रीय सुरक्षा को समझते हैं। एक अन्य पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश (सेवानिवृत्त) ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अर्थशास्त्र को पीछे रखना चाहिए। सेना में किसी भी बदलाव या सुधार के लिए एकमात्र लिटमस टेस्ट यह होना चाहिए: क्या यह युद्ध प्रभावशीलता को बढ़ाता है या घटाता है?

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सीमित संख्या का था प्रस्ताव

उन्होंने कहा कि कॉम्बेट यूनिट पर थोपे जा जा रहे 'भारी ऑपरेशनल बाधा' के बारे में चिंता होनी चाहिए। इन यूनिट्स को केवल संतरी ड्यूटी के लिए उपयुक्त बमुश्किल प्रशिक्षित रंगरूटों को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाता है। संयोग से, अग्निवीरों को पहले नियमित सैनिकों के लिए लगभग 11 महीने के बजाय छह महीने की छोटी बेसिक ट्रेनिंग मिलती है। अन्य सैन्य प्रमुख और शीर्ष अधिकारी भी कई मामलों में अग्निपथ की आलोचना करते हैं। पूर्व सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवंस, जो अप्रैल 2022 में सेवानिवृत्त हुए, निश्चित रूप से पहले ही कह चुके हैं कि सेना ने शुरू में प्रस्ताव दिया था कि केवल 'सीमित संख्या (10%)' जवानों को शॉर्ट टर्म सर्विस के लिए नामांकित किया जाना चाहिए।

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एकजुटता की भावना में दरार!

हालांकि, पीएमओ ने निर्देश दिया कि न केवल पूरी भर्ती (100%) शॉर्ट-सर्विस आधार पर होनी चाहिए, बल्कि यह भारतीय वायुसेना और नौसेना पर भी लागू होगी। बाद में, सेना ने यह भी तर्क दिया कि भर्ती किए गए 75% जवानों को बरकरार रखा जाना चाहिए, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने कहा कि अग्निपथ योजना पहले से ही बटालियनों की 'सबसे महत्वपूर्ण एकजुटता, सौहार्द और रेजिमेंटल भावना में दरारें' पैदा कर रही है।

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अग्निपथ में बदलाव करने क्या बुराई है?

सैन्य अधिकार का कहना है कि अब सैनिकों के दो वर्ग हैं, अग्निवीर और नियमित सैनिक जिन्हें अधिक वेतन और वार्षिक अवकाश के साथ-साथ पेंशन भी मिलती है। अग्निवीरों के बीच नियमित सैनिकों के रूप में बने रहने के लिए अपनी उपयुक्तता साबित करने के लिए अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी उभर रही है। अगर संविधान में 100 से अधिक बार संशोधन किया जा सकता है, तो अग्निपथ में बदलाव करने में क्या बुराई है?

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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